जगत में झूठी देखी प्रीत। अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत। अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥ मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत। नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
श्री गुरु नानक देव जी Shiri Guru Nanak Dev ji
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January 02, 2019
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